Dear Friends : Importance of Vastu
My self is Darshan Kumar. Here... On this page ....just I wants to tell you about importance of Vastu. I thinks...it is the most important topic which need to know each and every person. It require in each and every home,office,shop,factory,building, temple, tower and even city also. It must require at every rooms in a small house also.
Do you know how Vastu word come from where and what is the meaning of Vastu ?
We can define it as a "science of architecture".I think Vastu describe the principles of design,ground preparation, measurements, layout, space arrangement etc.
Where we must put each and every things in our house...that's we can know here in a very very simple style.We all know very well if anybody make their home without vastu gyan... they saw the negative effects very soon.
I met many person who are living their life in sadness and with many problems. I think 99% people suffering these types of problems which happened because their home not build according to Vastu. But don't worry I will try to give you all Vastu Gyan... so that you can live your life with happiness.
Do you know how Vastu word come from where and what is the meaning of Vastu ?
वास्तु शब्द कहाँ से निकला और इसका क्या मतलब हैं ये जानना बहुत जरुरी हैं . . . .
वास्तु शब्द संस्कृत भाषा के वसु धातु से निकला हैं.. . . वसु का मतलब होता है "आवास" या वह स्थान जहाँ इंसान रहता हैं।
तो वास्तु का मतलब हुआ वह स्थान जहाँ मनुष्य रह कर या काम करके अपना जीवन यापन करें, वास्तु कहलाता हैं | वास्तुकारों ने प्रसिद्ध एवं मानक ग्रन्थ "वृहत सहिंता " और "अमर कोष " आदि में भी वास्तु का अर्थ मनुष्य के रहने की जगह यानि "घर "को ही बताया जाता हैं | प्रकृति के तत्वों में संतुलन बैठाना भी वास्तु की श्रेणी में रखा जाता हैं |
वास्तु शास्त्र के रचयिता देवताओं के रचनाकार विश्वकर्मा को ही माना जाता हैं | ऋग्वेद में वास्तु शास्त्र का पहला प्रयोग मिलता हैं | सिन्धुघाटी की सभ्यता में भी वास्तु शास्त्र का प्रयोग भरपूर मात्रा में देखने को मिलता हैं | भारतीय वास्तुशास्त्र का जन्म वेदों के उपभाग से हुआ माना जाता हैं | चार वेदों के चार उपवेद लिखें गये उनके नाम हैं। 1. धनुर्वेद 2. आयुर्वेद 3. स्थापत्य वेद और 4. गांधर्व वेद | इनमें स्थापत्य वेद में वास्तु शास्त्र के बारे में विस्तार से लिखा गया हैं | स्थापत्य को ही दूसरे शब्दो में वास्तु कहा जाता हैं | वास्तु ज्ञान मानव समाज के विकास और उत्थान के लिए हैं | इस ज्ञान से मनुष्य अपना तथा अपने समाज का उत्थान करके लाभ प्राप्त कर सकता हैं | इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो मनुष्य किस जाति का है और किस धर्म का हैं | वास्तु को किसी जाति , धर्म,संस्कृति, भाषा,तथा देश -विदेश में नहीं विभाजित किया जा सकता यह सभी के लिए एक समान उपयोगी तथा लाभदायक होता हैं |
आप सभी जानते हैं कि मनुष्य का शरीर 5 तत्वों से मिलकर बना है ---जल , वायु ,अग्नि ,पृथ्वी और आकाश | प्रकृति और किसी भी जीव का अस्तित्व इन्ही 5 तत्वों पर निर्भर हैं | यदि प्रकृति इन पांचो में से किसी भी में थोड़ा सा भी असंतुलन कर दे तो विनाशलीला हो जाती हैं | ठीक उसी प्रकार हमारा घर भी इन्ही पांच तत्वों से मिलकर बनता है | अगर घर बनाते हुए इन्ही पांच तत्वों का संतुलन ठीक से ना किया जाये तो वह घर मनुष्य को हर तरह से दुःख और तकलीफ़ ही देगा, सुख -शांति नहीं |
वास्तु शास्त्र की रचना इन्ही पांचो तत्वों के संतुलन पर आधारित | यदि कोई भी इन पांचो तत्वों की प्रकृति और अनुपात के विपरीत निर्माण करता है तो वह उससे अवश्य प्रभावित होगा इसमें कोई भी संदेह नहीं हैं | इसलिए घर बनाते हुए इन पांचो तत्वों का ध्यान रखना अति आवश्य्क हैं | जिससे की आपका और इन तत्वों का संतुलन बना रहे और आपका घर आपको सुख , शांति , समृद्धि और सफलता प्रदान करें |
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